02-May-2024

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बाबुजी की प्रथम पुण्‍यतिथि पर पुष्‍पाजंली

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भोपाल, लगभग एक वर्ष पूर्व बाबुजी के दु:खद निधन ने हमारे पूरे परिवार एवं स्‍वजनों को झंकझोर कर रख दिया था। वह समय इतना कठिन था कि हम एक- दूसरे को संभाल कर खुद संभल रहे थे। बहुत बुरा समय था, जब हम अपने किसी स्‍वजन को खोने के बाद उसके दु:ख को कम करने और सांत्‍वना देने के लिए उसके पास भी नही जा पा रहे थे। कोविड- 19 का दूसरा दौर सभी पर भारी था। ऐसा ही वक्‍त हमारे परिवार पर भी आया। पहले दो करीबी मित्रों को खोया और फिर हमारे घर- परिवार के मुखिया पिता श्री रामचन्‍द्र धनोतिया भी हमें छोड़कर चले गये। आज तिथि अनुसार उनके स्‍वर्गवास को एक वर्ष पूर्ण हो गया है। वैसे 2 मई 2021 को हमारे (प्रदीप, राजेेन्‍द्र, ओमप्रकाश एवं डॉ. गोपाल)  पिता का साया हमारे ऊपर से उठा था। 

पिताजी वैसे तो 2015 में लकवाग्रस्‍त हो गये थे, लेकिन परिजनों की सेवा से उन्‍हें 2021 के काेरोना संक्रमण के दूसरे दौर से पहले तक काफी स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हो गया था। जैसे ही कोरोना संक्रमण ने उन्‍हें घेरा अप्रेल माह के तीसरे सप्‍ताह में उनका स्‍वास्‍थ्‍य अचानक खराब होने लगा और फिर वे संभल नहीं सके। 2 मई 2021 की प्रात: वो हम सबको छोड़कर चले गये। पिता जी की पहली पुण्‍यतिथि में अभी एक सप्‍ताह से ज्‍यादा का समय हैं, लेकिन परिवार के वरिष्‍ठ सदस्‍यों द्वारा तिथि अनुसार यानि आज उनकी पुण्‍यतिथि पर ब्राह्मण भोज कराने का निर्णय लिया, और इसको विधि- विधान से संपन्‍न कराकर पिता श्री की पुण्‍यात्‍मा को शांति का उपक्रम किया गया। 

हमारे परिवार के मुखिया के र्स्‍वगारोहण के बाद उनके पुत्रों के साथ ही बहुओं एवं पोतों ने भी वर्ष भर उनकी याद में जरूरतमंदों की सेवा का अघोषित संकल्‍प लिया और उसे निभाते चले आ रहे है। समय- समय पर वृद्धाआश्रम में जाकर उनकी सेवा और सहायता का उपक्रम भी परिवार कर रहा है, ऐसा तय किया है कि इस उपक्रम को यथासंभव जारी रखा जाएं। पोते अजय और सुधांशु भी अपनी सामर्थ अनुसार इस उपक्रम में लगे हुए हैं। यहां मैं ( राजेन्‍द्र धनोतिया )  इस बात का उल्‍लेख करना उचित समझता हूं कि जब परिवार में पुण्‍यतिथि पर ब्राह्मण भोज करना तय किया तो मैंने अपने परिचित पंडित जी को मोबाइल लगाकर आमंत्रित किया तो उन्‍होंने भी यह सुझाव दिया कि आप पूर्ववत जरूरतमंदों एवं वृद्धाआश्रम में ही यह कार्य करें, लेकिन परिवार की महिलाओं के अनुरोध की बात बताने पर उन्‍होंने भी पंच ब्राह्मणोंं के साथ हमारे यहां आना स्‍वीकार कर लिया। 

तिथि अनुसार प्रथम पुण्‍य तिथि पर पिता जी के साथ की कई स्‍मृतियां दिल- दिमाग में रह- रह कर आ रही है। दिन- भर से इसका क्रम कुछ ज्‍यादा है। वह एक- एक पल ऑखों के सामने से गुजर रहा है, जब उनकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी और इलाज का एकमात्र सहारा हमारे बड़े भाई समान डॉ. योगेश मल्होत्रा को हम मोबाइल पर समय- समय पर बताकर उनके मार्गदर्शन में बाबुजी और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों का इलाज जारी रखे हुए थे। बाबुजी को चेतन्‍य बनाये रखने के लिए कहते थे- बाबुजी राम- राम, जय- जय श्री राम, भैय्या राम, पहले कुछ दिनों तक तो वो भी हमारे साथ इनका दोहराव करते थे, लेकिन धीरे- धीरे इसका क्रम घटता गया। फिर आखिर के दो दिन तो वो सिर्फ ऑखों से इस पर प्रतिक्रिया देने लगे और 1 मई को यह भी बंद हो गया। उन्‍हें सुनाई दे रहा है, ऐसा तो अहसास होता था, लेकिन उनकी तरफ से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नजर नहीं आ रही थी। एक और दो मई की देर रात्रि तक उन्‍हें ब- मुश्किल तरल पदार्थ देते रहे। हमारी निगाहें उनके आक्‍सो मीटर और ऑक्‍सीजन कंस्‍नट्रेटर पर लगी रही। सुबह पांच बजे हमारी बोझिल ऑखों पर नींद हावी हो गयी और जब नींद खुली तो पिता जी यानि हमारे बाबुजी हमें छोड़कर जा चुके थे।  

मेरे पिता एक शासकीय सेवक थे। उन्‍होंने सेवानिवृत्ति के पहले से ही गायत्री परिवार के युग निर्माण योजना में सेवा का संकल्‍प लिया और इसमें जीवनकाल के अंतिम समय से पूर्व जब तक वे स्‍वस्‍थ्‍य रहे निभाते रहे। उनकी दिनचर्या बहुत ही अनुशासित रही। जब तक वो सक्रिय रहे, हमें घर के कामों का अहसास नहीं हुआ। सुबह पांच बजे उठना और फिर नित्‍यकर्म से निपटकर घर के कामों में लग जाना। मैं, जब सुबह उठता था, तक तक तो बाबुजी घर के रोजाना के कार्य निपटा चुके होते थे। साथ ही अखण्‍ड ज्‍योति और युग निर्माण योजना से जुड़े साहित्‍य का वितरण एवं उससे जुड़ कार्य कर चुके होते थे। शाम होते ही गायत्री शक्तिपीठ पर समय दान के लिए पहुंच जाते थे। 3 से 4 घंटे का समय वहां भी नियमित रूप से देते थे। उनका जीवन मूल्‍य पूरी तरह सादा जीवन उच्‍च विचार का पालन करते हुए गुजरा। आज उनकी कई बातें याद आ रही हैं। अब उन्‍हें सिर्फ इसी तरह याद करने के सिवाय कुछ और नहीं।

यहां यह कहना चाहता हूं कि क्रूर काल समय के भयावह समय को हमने देखा और कई अपनों को इस दौरान खो दिया। खैर अब वह बुरा समय गुजर सा गया लगता है। फिलहाल कोरोना संक्रमण का असर लगभग शून्‍य सा है। यह बात हमारे मध्‍यप्रदेश की है। वैसे देश की राजधानी में यह फिर अपना असर दिखाने लगा है। लेकिन इस बार अच्‍छा यह है कि जिन लोगों को वैक्‍सीन के दो डोज लग चुके है, उन पर इसका असर काफी कम है। नीयती ने हमें अब अपनों को खोने के बाद अब प्रतिवर्ष उन्‍हें याद करने और उनकी स्‍मृतियों को अपने में जिंदा रखने के सिवाय कुछ छोड़ा नहीं है, इसलिये इसी के सहारे आगे के जीवन में बढ़ते रहना है....

 

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