02-May-2024

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कोरोना की आफत का आना और परम मित्रों का दुनियां से चले जाना, बहुत याद आती हैं राजेश भाई और तात्‍या भाई की

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 वर्ष 2021 का अप्रेल माह मेरी जिंदगी का सबसे बुरा साल रहा। कोरोना संक्रमण के दूसरे दौर ने वह सब कुछ छींना जो वर्षों तक मेरे जीवन में नहीं छींना जाना था। काफी बुरा समय इसलिए कह रहा हूं, क्‍योंकि इस वर्ष के अप्रेल माह में मैंने बहुत कुछ खोया। जीवन के अच्‍छे- बुरे समय में आपके परिजन और वो जन जो आपके जीवन में बहुत ज्‍यादा महत्‍व रखते है, उनका आपके बीच से दूर दुनियां में चला जाना जहां से वे कभी नहीं लौटने वाले हो तो फिर जीवन में कितना भी चाहे नीरसता का भाव स्‍थायी रूप ले लेता है। मैंने पिछला पूरा वर्ष इसी जद्दोजहद के बीच व्‍यतीत किया हैं। उन खैरख्‍वाहों को खोया जो इस बुरे दौर में जब कोई किसी से मिलने में भी डर रहा था, लगभग रोज ही हाल-चाल जानते रहते थे। मिलने भी आ जाया करते थे। भले ही उनसे दो मीटर की दूरी पर खड़े होकर मिलता था या फिर अपने घर की बालकनी में खड़ा होकर हाल- चाल लिया और दिया करता था।

भूमिका बहुत हुई, मैं बात कर रहा हूं, मेरे परम मित्र राजेश तिवारी और मेरे बड़े भाई जैसे निर्मल पिंगले (तात्‍या भाई) की। ये दोनों ही मेरे जीवन में बहुत मायने रखते हैं। जब थे तब भी और अब जब नहीं है, तब भी। वर्ष 2021 अप्रेल के शुरूआती दिनों में एक दिन मोबाइल पर मुझे बताया गया कि तात्‍या भाई की तबियत ठीक नहीं है। उन्‍हें स्‍वांस लेने में काफी परेशानी हो रही है। उनकी माता जी यानि हम सबकी बाई की तबियत भी ठीक नहीं है। भाभी श्रीमती श्‍वेता को भी ठीक नहीं लग रहा। तीनों को ही कोरोना के लक्षण प्रतीत हो रहे है। इधर, मेरे पिता की भी तबियत ठीक नहीं थी, तो मैं वहां नही जा पाया। उनके परिजन उन्‍हें लेकर एक निजी अस्‍पताल गये। वहां काफी परेशानी के बाद उन्‍हेंं एडमिट किया गया। लेकिन कोरोना के मरीजों की संख्‍या इतनी अधिक थी कि किसी का भी ध्‍यान ठीक से नहीं रखा जा रहा था। या यह कहें कि वह संभव नहीं था। स्‍वास्‍थ्‍य कर्मी और चिकित्‍सक भी कम पड़ रहे थे, मरीजों को अंटेड करने में इतना समय लग रहा था कि उसके परिजनों को अपने मरीज की चिंता सताने लगी थी। बार-बार भाभी और उनके बच्‍चों के मोबाइल आ रहे थे, मैं भी यथा संभव प्रयास कर रहा था किसी तरह जनरल वार्ड से इमरजेंसी वार्ड का इंतजाम हुआ, लेकिन वहां भी चिकित्‍सक ठीक से अंटेड नहीं कर रहे थे। तीनाें यानि बाई, तात्‍या भाई और भाभी को उनके बच्‍चों ने इलाज की व्‍यवस्‍था ठीक नहीं होने पर अन्‍य चिकित्‍सालय में भर्ती करा दिया। रोज ही उनका हाल लिया जाता रहा। आश्‍वासन मिलते रहे।

फिर एक दिन यह कहा गया कि बाई तो ठीक हो रही है। मगर तात्‍या भाई की हालत में खास सुधार नहीं है। भाभी कुछ ठीक है, उन्‍हें अस्‍पताल से रिलीव कर दिया जाएगा। मगर उन्‍होंने पति यानि तात्‍या भाई की हालत को देखते हुए वहीं रहने का फैसला किया। अप्रेल के दूसरे सप्‍ताह के आखिर दिनों में वहां से यह खबर आई की बाई को रिलीव कर देंगे, उनकी तबियत अब सुधार पर है, लेकिन एक दिन बाद ही देर रात्रि में उन्‍होंने दम तोड़ दिया। उसी अस्‍पताल में होने के बाद भी तात्‍या भाई से मांं के निधन की जानकारी को छुपाया गया। उनकी पोती यानि तात्‍या भाई के बड़ी बेटी प्रिया ने अस्‍पताल से सीधे भदभदा विश्राम घाट पर लाकर उनके पार्थिव शरीर को रात्रि में ही अग्नि दी। तात्‍या भाई के दो भाई और भी भोपाल में ही थे, लेकिन उनका स्‍वास्‍थ्‍य भी ठीक नहीं था। मां के निधन की जानकारी भले ही तात्‍या भाई को नहीे दी गयी थी, लेकिन उन्‍हें इस बात का अहसास हो गया था। उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था। किसी तरह से परिजन और उनके स्‍वजनों ने नहीं मिल रहे इंजेक्‍शनों का इंतजाम हर कीमत पर किया। प्‍लाज्‍मा की व्‍यवस्‍था भी कराई गयी। इसमें हमारी राजधानी के पूर्व सासंद और मेरे अनुज आलोक संजर ने पूरी मदद की। प्‍लाज्‍मा का इंतजाम उन्‍होंने अपने ही परिवार के सदस्‍यों के माध्‍यम से करवाया। उनकी इस सदाशयता को मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा। खैर यह सब भी काम नहीं आया और आख्रिर 17 अप्रेल को तात्‍या भाई हम सबको छोड़कर चले गये। मेरा स्‍वास्‍थ्‍य खराब था, फिर भी मैं तात्‍या भाई के अंतिम संस्‍कार में शामिल हुआ। जेपी भाई भी नहीं माने और वे भी वहां पहुंचे। पिता को अंतिम विदाई देने तात्‍या भाई की बेटी प्रियंका और अन्‍य परिजन भी आए थे। 

राजेश भाई आपको कभी भी भूल नहीं पाऊंंगा 

मेरे जीवन में मित्रों की कमी नहीं, इनकी संख्‍या बहुत से भी अधिक है। कॉलेज से लेकर छात्र राजनीति एवं पत्रकारिता के कैरियर और समाज के अधिकांश अंगों में मेरा दायरा काफी फैला हुआ हैं। लेकिन इन सबसे हटकर राजेश भाई आपने मुझे काफी प्रभावित किया। कॉलेज के वक्‍त जब हमारा संपर्क हुआ और फिर वह गहरा ही होता गया। यह रिश्‍ता इतना प्रगाड़ हुआ कि एक- दो दिन भी नहीं मिल पाते थे, तो कितनी भी व्‍यस्‍तता रही हो, बात कर ही लिया करते थे। कभी घर पर तो कभी आपके आफिस के नीचे तो कभी जवाहर चौक पर तात्‍या भाई के प्रतिष्‍ठान पर। आपने मेरे अच्‍छे खासकर बुरे समय पर हमेशा ही साथ खड़े होकर साथ दिया। जब मैं, जवाहर चौक का शासकीय आवास छोड़कर गुलमोहर कॉलोनी में रहने आया तब भी आपने यहां पर भी मेरे निवास पर हमेशा ही दस्‍तक दी। जब तात्‍या भाई की तबियत खराब हुई तब भी मैंने आपसे अपनी सेहत का ध्‍यान रखने के लिए कहा, लेकिन आपका अपनी छोड़ दूसरों की चिंता करने का स्‍वभाव इसमें आड़े आता रहा। आपको भी कोरोना ने जकड़ लिया था। अप्रेल माह में आप भी इस बीमारी से ग्रसित हो गये। घर पर ही अपना इलाज करते रहे। फिर एक दिन जब बोनी (पीयूष) बैंगलुरू से भोपाल आया और आपका टेस्‍ट कराया गया तब पता चला कि आपको अस्‍पताल में भर्ती कराना होगा। तब भी मेरी आपसे मोबाइल पर बात हुई थी, और आपने अपने स्‍वभाव के अनुसार बाऊजी (मेरे पिता) और मेरा हालचाल जानने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी दिखाई थी। 

शाम को मैंने बोनी से पूछा तब उसने बताया कि आपको एडमिट कराना होगा। आपको अस्‍पताल में एडमिट कराने के बाद रोजाना ही हालचाल लेता रहा। शुरूआति दिनों में तो यह जानकारी मिलती रही कि आपके स्‍वास्‍थय में सुधार है, लेकिन फिर एक दिन पता चला कि इंजेक्‍शन की जरूरत है और वह नहीं मिल रहा है, आपके बेटे बोनी और भांजे सहित अन्‍य परिजनों ने काफी प्रयास किये। मैंने भी अपना जोर लगाया। काफी भागदौड़ के बाद इंजेक्‍शन नहीं मिल रहा था, तब मैंने अपने एक अधिकारी मित्र से अनुरोध किया। उन्‍होंने इंदौर से इंजेक्‍शन की व्‍यवस्‍था की, लेकिन तब तक बोनी ने मुझे बताया कि उन्‍हें इंजेक्‍शन मिल गया है। इंजेक्‍शन के बाद चिकित्‍सक यह जानकारी देते रहे कि अब शीघ्र लाभ मिल जाएगा। स्‍वास्‍थ्‍य भी ठीक हाेने लगेगा। आपकी ईश्‍वर में गहरी आस्‍था और आपके द्वारा जीवन में किये गये अच्‍छे कामों को देखकर मुझे लगता रहा कि आपको कुछ नहीं हो सकता। आपका इलाज जारी था और इस बीच आपकी अम्‍मा भी बीमार हो गयी। आपके बच्‍चों एवं भांजों ने उनकी सेवा घर पर ही किसी तरह इंतजाम कर खूब की। लेकिन तात्‍या भाई की तरह ही माताजी आपको छोड़कर चली गयी। इसकी जानकारी आपको भी नहीं दी गयी। वैसे ही हमने आप तक तात्‍या भाई की मृत्‍यु की जानकारी भी छुपाई थी। ताकि आपके स्‍वास्‍थ्‍य पर उसका बुरा असर ना पड़े। अम्‍मा का अंतिम संस्‍कार आपके परिजनों ने किया। मैं, वहांं जाना चाहता था, लेकिन इस बीच मेरे पिता (बाऊजी) का स्‍वास्‍थ्‍य भी काफी खराब हो गया था, बोनी ने कहा अंकल आप अपना और दादाजी का ख्‍याल रखिये। उधर रंजना भाभी एवं बोनी और रूद्राक्षी को भी कोरोना संक्रमित  होने की जानकारी मिली, लेकिन उन्‍होंने फिर भी आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए दिन- रात्रि कुछ नहीं देखा।

अप्रेल के आखिर में यह जानकारी भी मिलने लगी कि आपका स्‍वास्‍थ्‍य अब सुुधार पर है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बोनी ने एक दिन आपका फोटो भी भेजा था। उसमें लग रहा था कि आप बहुत कमजोर हो गये है, लेकिन ईश्‍वर में अगाध आस्‍था रखने वाला मेरा मित्र शीघ्र स्‍वस्‍थ्‍य होकर मोबाइल पर स्‍वयं ही इसकी जानकारी देगा कि हां भाई कैसे हो राजेश बोल रहा हूं। लेकिन यह मेरे मन का भ्रम ही साबित हुआ। एक मई को जानकारी मिली कि आप हमें छोड़कर चले गये। यह मेरे लिये काफी दु:खदाई था। इस बीच मेरे स्‍वास्‍थ्‍य में भी अत्‍यधिक गिरावट आ गयी थी। बाऊजी भी गंभीर हो गये थे। मैं, अस्‍पताल में भर्ती होने की जद्दाेजहद कर रहा था और उधर पिताजी अति गंभीर अवस्‍था में आ गये थे। मैंने आपको अंतिम विदाई के लिए आना चाहा, लेकिन बोनी ने मेरे और पिता के स्‍वास्‍थ्‍य का हवाला देेकर न आने का अनुरोध किया। हिम्‍मत जवाब दे गयी थी, आपको अंतिम विदाई न दे पाने का अफसोस हमेशा रहेगा। 

राजेन्‍द्र धनोतिया

कुछ यादें

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