05-May-2024

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सेना और रेलवे के बाद वक्फ के पास सबसे ज्यादा जमीनें, मुस्लिमों की इतनी प्रॉपर्टी कि हिंदुओं से लेने की जरूरत नहीं

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नई दिल्ली, (दिनेश मिश्र)  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक चुनावी रैली में कहा था कि कांग्रेस माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेगी। फिर उस संपत्ति को उनको बांटेगे जिनके बारे में मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। मोदी के इस बयान के बाद प्रचंड गर्मी में सियासी पारा और बढ़ गया है। कांग्रेस पीएम मोदी के इस बयान को लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच गई है। सियासी बयानबाजी जो भी हो, लेकिन यह हकीकत है कि देश में मुसलमानों के पास संपत्ति की ज्यादा कमी नहीं है। बीते साल अल्पसंख्यक मंत्रालय ने फरवरी में लोकसभा में यह जानकारी दी थी कि मुस्लिमों की संस्था वक्फ बोर्ड के पास दिसंबर, 2022 तक कुल 8,65,646 अचल संपत्ति थी।

एक आंकड़े के अनुसार, भारत में वक्फ की कुल संपत्ति करीब 8 लाख एकड़ है। यह संपत्ति इतनी ज्यादा है कि सेना और रेलवे के बाद वक्फ के पास सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी है। 2009 में यह प्रॉपर्टी करीब 4 लाख एकड़ ही थी, जो अब दोगुनी हो चुकी है। वक्फ को मुस्लिमों का रहनुमा कहा जाता है, फिर भी देश में मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। सच्चर कमेटी के अनुसार, देश में मुस्लिमों की हालत अनुसूचित जातियों से भी ज्यादा बदतर है।

जब अंग्रेजी राज में जजों ने वक्फ को अवैध ठहराया था

भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से हुई। एस अतहर हुसैन और एस खालिद राशिद की किताब वक्फ लॉज एंड एडमिनिस्ट्रेशन इन इंडिया (1968) में कहा गया है कि सुल्तान मुइजुद्दीन सैम घावोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव दिए थे। जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत थी, तब भी वक्फ की संपत्ति को लेकर खूब विवाद हुआ। यह विवाद इतना बढ़ा कि लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल तक जा पहुंचा। 4 ब्रिटिश जजों ने वक्फ को अवैध करार दिया था। मगर, उनके फैसले को तत्कालीन ब्रिटिश भारत की सरकार ने नहीं माना। मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913 के जरिए वक्फ को बचा लिया गया। अब चुनाव में जिस सोने की बात की जा रही है, जरा उसका ब्यौरा नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं। यह जानते हैं कि किसके पास कितना सोना है?

नेहरू ने 1954 में बनाया वक्फ एक्ट

आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में वक्फ एक्ट बनाया, जिसका काम वक्फ का केंद्रीयकरण करना था। इसी एक्ट के तहत सरकार ने 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन किया। 1995 में कानूनों में बदलाव किया गया। हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई। वक्फ की प्रॉपर्टी को लेकर किसी मामले में सेंट्रल वक्फ काउंसिल केंद्र को सलाह देती है। किसी विवाद की स्थिति में वक्फ प्रॉपर्टी ट्रिब्यूनल ही फैसला करेगा।

सच्चर कमेटी के मुताबिक, मुस्लिमों की हालत एससी-एसटी से भी खराब

देश में मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का हाल जानने के लिए 2005 में सच्चर कमेटी बनी थी। इस कमेटी 2006 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें कहा गया था कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यक आबादी वाले गांवों और आवासीय इलाकों में स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल जैसी सुविधाओं की काफी कमी है। यहां तक कि मुस्लिम समुदाय की हालत अनुसूचित जाति और जनजाति से भी खराब है। 2006 में सरकारी नौकरियों में महज 4.9 फीसदी ही मुस्लिम थे।

किसके पास कितनी कीमत की संपत्ति

2020 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज की एक स्टडी प्रकाशित हुई। 'स्टडी रिपोर्ट ऑन इंटर ग्रुप इनइक्वलिटी इन वेल्थ ओनरशिप इन इंडिया' के अनुसार, देश की कुल संपत्ति का करीब 41 फीसदी संपत्ति हिंदुओं के हाथ में है। इसके बाद 31 फीसदी संपत्ति हिंदु ओबीसी के पास है। वहीं, मुस्लिमों के पास 8 फीसदी, अनुसूचित जाति के पास 7.3 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के पास 3.7 फीसदी संपत्ति है। रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुओं की अगड़ी जातियों के पास जितनी संपत्ति है, उसकी कुल कीमत 1,46,394 अरब रुपए है, जो एसटी के 13,268 अरब रुपए से 11 गुना ज्यादा है। मुस्लिमों के पास 28,707 अरब रुपए की संपत्ति है।

मुस्लिमों की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, मुस्लिम समुदाय या वक्फ बोर्ड के पास पर्याप्त प्रॉपर्टी है। उन्हें हिंदुओं से लेने की जरूरत नहीं है। सबसे जरूरी बात है मुस्लिमों की शिक्षा की। सच्चर कमेटी कहती है कि आम आबादी के 70 फीसदी बच्चों के मुकाबले केवल 59 फीसदी मुस्लिम बच्चे की प्राइमरी एजुकेशन ले पाते हैं। मुस्लिम बच्चों में बहुत से ऐसे हैं जिन्हें बीच में ही स्कूल छोड़ना पड़ता है। वहीं, हायर एजुकेशन के मामले में तो हालात और खराब हैं। केवल 4.9 फीसदी मुस्लिम बच्चे ही यूनिवर्सिटी में दाखिला ले पाते हैं। वो कहते हैं कि वक्फ बोर्ड ज्यादातर धार्मिक काम ही करता है। वह अपने मालिकाना हक वाली जमीनों और मस्जिदों के रखरखाव पर पैसे खर्च करता है। इसी के साथ वक्फ की जमीन पर बनी यूनिवर्सिटी, स्कूलों और मदरसों का प्रबंधन भी करता है। ऐसे में उसे मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए मुस्लिम समुदाय की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। वक्फ अगर अपनी मिल्कियत मुस्लिमों की एजुकेशन में लगाए तो मुसलमानों के हालात बेहतर हो सकते हैं। मुस्लिम समाज को सामाजिक और आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है, ताकि देश की जीडीपी में वो बेहतर योगदान कर सकें।

साभार- नभाटा में  दिनेश मिश्र की रिपोर्ट

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